तटीय क्षेत्रों में अक्सर संतुलित, यानी मॉडरेट जलवायु मिलती है। यहां न बहुत ज्यादा गर्मी पड़ती है, न ही बहुत ज्यादा ठंड। समझते हैं, ऐसा क्यों:
जो क्षेत्र समुद्र के नजदीक होते हैं, वहां पर समुद्र का प्रभाव, गर्मी और सर्दी की प्रचंडता को कम कर देता है।
पानी की एक विशेषता होती है कि यह जमीन की तुलना में धीरे गर्म और धीरे ही ठंडा भी होता है।
तेज गर्मी के दिनों में, जमीन का इलाका बहुत गर्म हो जाता है, जिससे उसके ऊपर की हवा गर्म होकर ऊपर उठने लगती है और हवा का दबाव कम हो जाता है।
इसकी तुलना में, समुद्र का पानी उतना जल्दी गर्म नहीं होता, जिस वजह से वहां की हवा ठंडी और भारी होने की वजह से नीचे बैठी रहती है।
तटीय क्षेत्रों में हवा के दबाव में अंतर आ जाता है। जमीन पर दबाव कम होता है और समुद्री हिस्से में हवा का दबाव ज्यादा रहता है।
इसलिए, ठंडी हवा ज्यादा दबाव से कम दबाव की तरफ चलती है और तटीय क्षेत्रों में ठंडक लाकर गर्मी के प्रभाव को कम करती है।
सर्दियों में इसका ठीक उल्टा होता है। पानी धीरे-धीरे अपनी गर्मी छोड़ता है और जमीन तेजी से अपनी गर्मी छोड़कर ठंडी हो जाती है और उसकी हवा भी ठंडी और भारी होकर नीचे बैठ जाती है।
धीरे-धीरे गर्मी छोड़ने की वजह से, समुद्र की हवा अभी भी गरम रहती है और हल्की होकर ऊपर उठने लगती है। इस बार ठंडी हवा जमीन से समुद्र की तरफ चलती है, और ठंड का प्रभाव कम होता है।
उदाहरण के तौर पर, मुंबई और चेन्नई जैसे तटीय शहरों का मौसम संतुलित रहता है। लेकिन, दिल्ली और हरियाणा जैसे अंदरूनी इलाकों में मौसम बदलते ही तापमान में बड़ा अंतर देखा जाता है।
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