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हर दान से बड़ा है अंगदान!

भारत में हर साल हजारों मरीज किडनी, लिवर, दिल आदि से जुड़ी गंभीर समस्याओं के चलते जिंदगी और मौत के बीच जूझते हैं। ऐसे में, मृत्यु के बाद अंगदान एक ऐसा फैसला है जो किसी को नया जीवन दे सकता है। 

एक व्यक्ति मृत्यु के बाद अपने आठ से अधिक अंगों और ऊतकों का दान कर सकता है, जिनसे कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।

अंगदान की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब किसी व्यक्ति को “ब्रेन डेथ” घोषित किया जाता है, यानी दिमाग की सभी क्रियाएं स्थायी रूप से बंद हो जाती हैं, लेकिन मशीन की मदद से शरीर काम कर रहा होता है। 

इस स्थिति में परिवार की सहमति से उस व्यक्ति के अंगों को निकालकर, वे किसी जरूरतमंद मरीज को प्रत्यारोपित या ट्रांसप्लांट किए जाते हैं, जिससे उसे मिलता है उसका आने वाला कल।

ऐसा ही एक मामला देखने को मिला मुलुंड के Fortis Hospital में, जहां 41 वर्षीय ऊषा इंद्रसेन गोंड को ब्रेन डेड घोषित करने के बाद, उनकी दोनों किडनियों व लिवर को उनके परिवार ने डोनेट करने का फैसला किया।

बताया गया कि उनके पति, इंद्रसेन गोंड और दोनों बच्चों के दुख की घड़ी में लिए गए इस फैसले से, गंभीर बीमारियों से जूझ रहे तीन मरीजों की जान, खुशियों और सपनों को एक नया जीवन मिला।

डॉ. विशाल बेरी ने मुश्किल वक्त में उठाए गए इस कदम को रोशनी और खुशहाली का त्योहार, दिवाली मनाने के एक तरीके के रूप में देखा, जहां इस परिवार ने उन मरीजों को उज्जवल भविष्य भेंट किया।

इस तरह की कहानियां एक उम्मीद जगाती हैं, जो हमसे कहती है कि इंसानित आज भी जीवित है। हालांकि, यह भी सच है कि भारत में अंगदान की दर बहुत कम है। हर दस लाख लोगों में करीब एक व्यक्ति ही अंगदाता बनता है।

इसकी मुख्य वजह है जागरूकता की कमी, धार्मिक भ्रांतियां और कानूनी प्रक्रियाओं की जटिलता। यह सभी बातें अक्सर लोगों में इस मानवीय कर्म के प्रति एक संकोच पैदा करती हैं।

लेकिन, अगर हम सब यह संकल्प लें कि मृत्यु के बाद हम किसी के जीने का जरिया बनेंगे और अपने अंग दान करेंगे, तो हजारों लोगों को मिल सकती है एक नई सुबह। इसलिए ही अंगदान वाकई सबसे बड़ा दान है।

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